प्रस्तुति : अनूप नारायण सिंह
Online Desk (8 Feb.2024) पिछले 24 घंटे से इस बात के उधेड़ बुन में था कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राजधानी पटना को इंगित करके महिला सशक्तिकरण की एक अनूठी कहानी आपके सामने रखी जाए। जो कहानी आपके लिए अनसुनी हो। राजधानी पटना में महिला सशक्तिकरण देखना है या महिलाओं के प्रति पुरुषों का सम्मान देखना है तो आप पटना के किसी भी रूट में टेंपो की सवारी कीजिए।
आप छात्र है युवा है उम्र दराज है पर पुरुष है और अपने ऑटो के पीछे वाली सीट पर कब्जा जमा रखा है तो बीच रास्ते में जहां कहीं भी कोई लड़की या महिला आएगी अधिकार पूर्वक ऑटो वाला आपके पीछे की सीट से उठाकर ड्राइवर के बगल में लटकने वाली सीट की तरफ ट्रांसफर कर देता है ना कोई विरोध होता है और ना ही कोई कचकच मच मच। राजधानी पटना की लाइफ लाइन है ऑटो अगर पटना में दो-चार दिनों के लिए ऑटो की हड़ताल हो जाती है तब समझ में आता है कि शहर के 70 फीसदी लोग ऑटो का इस्तेमाल करते हैं सामान्य जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।
पटना के प्रमुख रूट में फुलवारी से जीपीओ भाया गर्दनीबाग सगुना मोर से भाया राजा बाजार गांधी मैदान तथा पटना जंक्शन। गांधी मैदान से गायघाट होते हुए पटना सिटी पटना जंक्शन से भूतनाथ होते हुए भाया गुलजरबाग पटना साहिब पटना जंक्शन से मलाही पकड़ी चौक होते हुए हनुमान नगर पटना जंक्शन से कंकड़बाग टेंपो स्टैंड करबिगहिया से गायघाट होते हुए हाजीपुर दानापुर से दीघा होते हुए गांधी मैदान।
मीठापुर बस स्टैंड से नए बस स्टैंड तक तथा मीठापुर बाईपास से करबिगहिया स्टेशन या अशोक सिनेमा हॉल तक सबसे प्रमुख रूट है। आपको लग रहा होगा कि हमने ऑटो को ही नारी सशक्तिकरण या महिलाओं के सम्मान का प्रतीक क्यों बताया है। तो अगर आप पटना में रहते हैं और आप ऑटो की सवारी करते हैं तो इसका जवाब आपके पास खुद है जब कोई महिला आती है पीछे की सीट पर पुरुष बैठा होता है कोई सवाल जवाब नहीं होता यानी महिलाओं के लिए पीछे की सीट रिजर्व है। यह सिस्टम कहीं ना कहीं घर से बाहर निकल कर स्कूल कॉलेज कार्यालय में जाने वाली महिलाओं और युवतियों को सुरक्षित सफर करने के लिए भी प्रेरित करता है।