प्रस्तुति : अनूप नारायण सिंह
Bihar Express Desk (22 दिसंबर 2023)। एशिया का विश्व प्रसिद्ध पशु मेला हरिहर क्षेत्र जिसे आप सोनपुर मेले के नाम से जानते हैं, अब अपनी पारंपरिक पहचान खोने लगा है। साधु और सांपों के कारण पूरी दुनिया में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखने वाला यह मेला बाद में जंगली जानवरों और पालतू पशुओं के मेले के रूप में विश्व विख्यात हुआ। पूरी दुनिया में यह इकलौता मेला था जहां हाथियों की खरीद-बिक्री होती थी। राजे-रजवाड़ों के समय इस मेले में पूरी दुनिया से व्यापारी आते थे साथ ही साथ उस जमाने के राजे-राजवारे, जमींदारों के टेंट मेला क्षेत्र में एक महीने तक लगते थे और उन सभी की तरफ से मनोरंजन करने के लिए ढाका से लेकर कबूल तक से तवायफ भी आती थी। कौन कितना धनवान और प्रभावशाली है उस जमाने में इसी बात से अंदाज लगाया जाता था कि किस राजा या किस जमींदार की तरफ से कितनी ज्यादा तवायफ के तंबू लगाए गए है।
समय बदला तो सब कुछ बदलने लगा। गंडक सोना और गंगा के त्रिवेणी पर बसा सोनपुर इतिहास के कई रहस्य को भी आपस में समेटे हुए है। भगवान विष्णु और शिव का अलौकिक शिवलिंग यहां बाबा हरिहर नाथ के रूप में विराजमान है। चमन ऋषि का आश्रम तपस्वीयो के तपस्या का तपोवन साधु गाछी के साथ ही सोनपुर का मेला स्थल हाथी बाजार, घोड़ा बाजार, चिड़िया बाजार, मीना बाजार, गाय बाजार समेत कई रंगबिरंगा बाजारों के नाम से कई भागों में विभक्त है। पहले के जमाने में जब आवागमन का साधन नहीं था तो नदी मार्ग से 3 नदियों से जुड़े होने के कारण लोग यहां आते थे। आजादी के बाद सोनपुर एशिया का सबसे बड़ा रेलवे प्लेटफार्म हुआ करता था। सोनपुर के बरबट्टा निवासी राजा साहब के नाम से मशहूर लगन देव बाबू बाघ वाले बच्चा बाबू की कहानियां भी सोनपुर के मेले से जुड़ी हुई है।
महात्मा गांधी सेतु के निर्माण के पहले राजधानी पटना उत्तर बिहार से पानी के जहाज के माध्यम से जुड़ा था। यह पानी के जहाज पहलेजा से महेंद्रू के बीच चला करते थे और सभी जहाज सोनपुर वाले बच्चा बाबू के थे। बच्चा बाबू उस समय बिहार के नामी जमींदार के रूप में जाने जाते थे। सोनपुर में उनके आवास के अहाते में शेर और बाघ जैसे जंगली जानवर स्वच्छंद रूप से विचरण करते थे। स्वर्गीय लगन देव बाबू का रुतबा इतना था कि बिहार की राजनीति से लेकर दिल्ली की सत्ता तक में उनकी तूती बोलती थी। उनके पुत्र व वरीय अधिवक्ता ओम कुमार सिंह कहते हैं कि सोनपुर मेले को लेकर कभी भी शासन प्रशासन गंभीर नहीं रहा इस विरासत को बचाने की कभी कोशिश ही नहीं हुई।
समय के साथ आधुनिकता की मार ने मेले की चमक को कम करना शुरू कर दिया। राजी-राजवाड़े और जमींदारी खत्म होने के बावजूद मेले के वजूद को बचाए रखने में सोनपुर के लोगों का बड़ा योगदान रहा। वे अपने स्तर से यहां आने वाले व्यापारियों को सुरक्षा और तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराते रहे।
मेले की पहचान पर ग्रहण लगना प्रारंभ हुआ 90 के दशक के बाद जब सरकार ने यहां पर हाथियों के बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। बाहर के व्यापारी यहां हाथी खरीदने ही आते थे। काबुल से घोड़े आते थे। गाड़ियों की बड़ी चकाचौंध ने घोड़ों के बिक्री को भी प्रभावित किया। गाय बैल की बिक्री भी कम होने लगी। इस कारण से देश-विदेश की आने वाली उन्नत नस्ल की गाय, भैंस व अन्य जानवर भी कम आने लगे।
धीरे-धीरे मेला तवायफों के तंबुओं की जगह मनोरंजन के लिए लगने वाले थियेटरों की तरफ आकर्षित होने लगा। जो मेला कभी बिहार की पहचान था अब वह मेला अपने वजूद के लिए लड़ रहा है। आज मेले में जो भी भीड़ आती है, वह गाय बैल खरीदने नहीं बल्कि तवायफ के तंबुओं की जगह लगने वाले थियेटरों की रंगीनियों में खोने के लिए आती है। इस बात को स्थानीय नागरिक भी स्वीकार करते हैं कि अगर थिएटर भी बंद हो जाएगा तो सोनपुर मेले में लोगों का आना जाना भी समाप्त हो जाएगा।
हालांकि इस बार सोनपुर मेले को नए सिरे से सजाया गया है 5 थियेटरों को लाइसेंस मिला है। सरकार की तरफ से सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर स्थानीय बिहारी कलाकारों तक के लिए मंच बनाए गए हैं जहां रोज सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं। मेले में खेलकूद कुश्ती बिहार के सभी प्रशासनिक विभागों की प्रदर्शनी या तो लगी ही है साथ ही साथ झूले सर्कस जादू का खेल खाने-पीने के सैकड़ों स्टॉल कपड़ों की सेल लकड़ी के सामानों के ढेर सारे स्टॉल भी लगे हैं। लोगों की भीड़ कुत्ता बाजार और चिड़िया बाजार में भी देखी जा सकती है लेकिन इस बार मेले में तलवार कटार और गुप्ति जैसे अस्त्रों के बिक्री पर रोक लगा दी गई है।
जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग ने यहां पर विदेशी पर्यटकों के लिए तथा देशी पर्यटकों के लिए कई उन्नत व्यवस्थाएं की है उनके लिए मेला क्षेत्र में ही अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त झोपड़ीनुमा कॉटेज बनाए गए हैं जहां एक न्यूनतम शुल्क पर रुक कर मेले का आनंद उठा सकते हैं। सोनपुर के घाटों पर लोगों को आकर्षित करने के लिए नौकायान की भी व्यवस्था की गई है। मेले में लोगों के मनोरंजन के लिए लगे थिएटर जो सोनपुर मेला की पहचान बन गए हैं उनमें हजारों की तादाद में पूरे देश से नर्तकियों का जुटान है जो शाम ढलते ही अपने हुस्न के जलवे में दर्शकों को सम्मोहित करती हैं। थियेटरो पर जिला प्रशासन द्वारा सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से नजर भी रखी जाती है कि कोई अश्लील नृत्य नहीं हो।