प्रस्तुति : अनूप नारायण सिंह
बड़े ब्यूटी पार्लर में महिला हेयर स्टाइलिश को पुरुषों के बाल काटते और शेव करते आपने कई बार देखा और सुना होगा। लेकिन इसी काम को जब गांव में कोई महिला घर-घर जाकर करने लगे फिर उसका काम कहीं मुश्किल होता है। सामाजिक तानों को दरकिनार कर बिहार के सीतामढ़ी में एक महिला अपनी गरीबी को दूर करने के लिए पुरुषों के बाल और दाढ़ी बनाती है। इससे होने वाली कमाई से घर का खर्च चलाने के साथ बूढ़ी मां और अपने बच्चों की देखभाल कर रही है।
बाजपट्टी इलाके की बररी फुलवरिया पंचायत के बसौल गांव निवासी 35 साल की सुखचैन देवी की शादी 16 साल पहले पटदौरा गांव में हुई। ससुराल में कोई जमीन नहीं होने और पिता की मौत के बाद दो बेटों और एक बेटी के साथ मां की जिम्मेदारी भी उनके सिर आ गई। पति रमेश चंडीगढ़ में बिजली मिस्त्री का काम करते हैं, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल है।
हालातों को देखते हुए इन्होने दो साल पहले अपना पुश्तैनी काम करने की ठानी। सुखचैन देवी के लिए नाई का कार्य आसान नहीं था। शुरुआत में लोग बाल-दाढ़ी बनवाने से हिचकते थे, लेकिन वह मायके में ही रहती हैं, इसलिए उन्हें बेटी और बहन कहने वाले उनसे काम करवाने लगे। अब ना ग्रामीणों और ना ही सुखचैन देवी में इस काम को लेकर कोई झिझक है। अब वो सुबह कंघा, कैंची, उस्तरा लेकर गांव में निकल जाती हैं। घूम-घूमकर लोगों की हजामत बनाती हैं। बुलावे पर घर भी जाती हैं। इससे प्रतिदिन करीब 200 रुपये कमा लेती हैं। इससे घर चलाने में काफी सहायता मिलती है।
नाई परिवार में जन्मीं सुखचैन ने यह काम किसी से सीखा नहीं। मां-बाप की एकलौती संतान होने के चलते बचपन में उनके पिता जहां भी दाढ़ी-बाल बनाते जाते थे, साथ ले जाते थे। उन्हें देखते-देखते यह काम सीख लिया। बड़ी होने पर मायके में बच्चों के बाल काटने से शुरुआत की। शादी के बाद इससे नाता टूट गया। तीन बच्चों पढ़ाने और गरीबी में परिवार की मदद के लिए इसकी फिर से शुरुआत की। सुखचैन का कहना है कि ‘पहले पास-पड़ोस में लोगों के यहां शादी-ब्याह के मौके पर महिलाओं के बाल और नाखून काटने से लेकर दूसरे काम करती थीं। धीरे-धीरे पुरुषों की हजामत करने लगी। ट्रेनिंग का मौका और साधन मिले तो ब्यूटी पार्लर खोल लूंगी। वह कहती हैं कि तीनों बच्चे अच्छी तरह से पढ़-लिख सकें, यही कोशिश है।’